Wednesday, August 8, 2018

कभी चुनाव नहीं हारने वाले करुणानिधि की दिलचस्प कहानी


करुणानिधि की दिलचस्प कहानी




तमिलनाडु के पूर्व मुख्‍यमंत्री और द्रमुक अध्यक्ष एम. करुणानिधि का निधन हो गया है. कावेरी अस्‍पताल की ओर से जारी बयान में कहा गया कि शाम छह बजकर 10 मिनट पर उन्‍होंने अंतिम सांस ली. उनके कई जरूरी अंग ठीक से काम नहीं कर रहे थे. वे लगातार लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे. अस्पताल ने बयान जारी कर कहा कि 94 वर्षीय पूर्व मुख्यमंत्री के करुणानिधि का जन्‍म 3 जून 1924 तमिलनाडु के नागपट्टिनम के तिरुक्कुभलइ में हुआ. ईसाई समुदाय से संबंध रखने वाले करुणानिधि मूलत: एक फिल्‍म पटकथा लेखक रहे, लेकिन फिल्‍मों की यह दुनिया उन्‍हें ज्‍यादा दिनों तक रास नहीं आई और वे दक्षिण भारत के बड़े सामाजिक प्रभाव वाले नेता बन गए.स्वास्थ्य की लगातार निगरानी की जा रही थी. आइए जानते ऐसे मिली सत्‍ता : करूणानिधि ने बाकायादा विधायक के रूप में तमिलनाडु की सियासत में प्रवेश सन् 1957 में किया, जब वे तिरुचिरापल्ली जिले के कुलिथालाई विधानसभा से जीते. इसके बाद वे 1961 में डीएमके कोषाध्यक्ष बने और 1962 में राज्य विधानसभा में विपक्ष के उपनेता बने और 1967 में जब डीएमके सत्ता में आई, तब वे सार्वजनिक कार्य मंत्री बने.हैं 



करुणानिधि जैसा नेता पूरे भारतीय राजनीति में बेहद अलग है. उनके नाम एक ऐसा रिकॉर्ड है, जो किसी के पास नहीं है.दरअसल करुणानिधि ने अपने 60 साल के राजनीतिक कॅरियर में अपनी भागीदारी वाले हर चुनाव में अपनी सीट जीतने का रिकॉर्ड बनाया है, ऐसा नेता पूरे भारत में कोई नहीं है. वे पांच बार (1969–71, 1971–76, 1989–91, 1996–2001 और 2यही नहीं उन्‍होंने 2004 के लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु और पुदुचेरी में डीएमके के नेतृत्व वाली डीपीए (यूपीए और वामपंथी दल) का नेतृत्व किया और लोकसभा की सभी 40 सीटों को जीत लिया. इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने डीएमके द्वारा जीती गई सीटों की संख्या को 16 से बढ़ाकर 18 कर दिया और तमिलनाडु और पुदुचेरी में यूपीए का नेतृत्व कर बहुत छोटे गठबंधन के बावजूद 28 सीटों पर विजय प्राप्त की. करुणानिधि उनके समर्थक उन्हें कलाईनार, जिसे तमिल में कला का विद्वान" कहते हैं, .2006–2011) मुख्यमंत्री रह चुके हैं.

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