Friday, August 17, 2018

कांशीराम को राष्ट्रपति बनाना चाहते थे अटल बिहारी वाजपेयी


अटल बिहारी वाजपेयी ने कांशीराम को राष्ट्रपति और एपीजे अब्दुल कलाम को मंत्री बनाने का ऑफर दिया था. दोनों शख्सियतों ने प्रस्ताव ठुकरा दिया था


कांशीराम और एपीजे अब्दुल कलाम ने क्यों ठुकरा दिया था अटल का ऑफर?





अटल बिहारी वाजपेयी हर किसी को साधकर चलते थे. हर पार्टी में, हर विचारधारा के लोग उनके दोस्त थे. उनका एक दिलचस्प वाकया कांशीराम और एपीजे अब्दुल कलाम से जुड़ा है. वे कांशीराम को राष्ट्रपति और एपीजे अब्दुल कलाम को अपनी कैबिनेट में मंत्री बनाना चाहते थे. लेकिन दोनों शख्सियतों ने अटल का प्रस्ताव ठुकरा दिया था. न कलाम मंत्री बनने को राजी थे और न कांशीराम राष्ट्रपति बनने के लिए. लेकिन दोनों के साथ अटल का संबंध लगातार बना रहा.
बीएसपी के संस्थापक कांशीराम (File photo)
नारायण के मुताबिक "वाजपेयी के प्रस्ताव को कांशीराम ने इसलिए ठुकरा दिया था क्योंकि वे जानते थे कि असली पावर राष्ट्रपति में नहीं बल्कि प्रधानमंत्री के पद में है. वह जानते थे कि राष्ट्रपति बनाकर उन्हें चुपचाप बैठा दिया जाएगा. इसके लिए वह तैयार नहीं थे. इसीलिए तब कांशीराम ने वाजपेयी से कहा था कि वह राष्ट्रपति नहीं बल्कि प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं."


कांशीराम का नारा था, 'जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी.' वह देश के ​दलितों को सत्ता का केंद्रबिंदु बनाना चाहते थे. ऐसे में वह केवल राष्ट्रपति बनकर मूक नहीं बनना चाहते थे. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि वाजपेयी कांशीराम के लक्ष्य को समझ नहीं पाए. कांशीराम का असली उद्देश्य देश के दलित समाज को उच्च पदों पर आसीन करना था.

कांशीराम ने मायावती को देश की पहली ​दलित महिला मुख्यंमत्री बनाकर अपने सपने को सच भी कर दिखाया. कांशीराम ने अछूतों और दलितों के राजनीतिक एकीकरण के लिए जीवनभर काम किया. समाज के दबे-कुचले वर्ग के लिए एक ऐसी जमीन तैयार की जहां पर वे अपनी बात कह सकें.
कांशीराम की जीवनी 'कांशीराम: द लीडर ऑफ द दलित्स' लिखने वाले बद्रीनारायण कहते हैं " हां, ये बात सही है कि अटल बिहारी वाजपेयी ने कांशीराम को राष्ट्रपति बनने का ऑफर दिया था. यह उस वक्त की बात है जब यूपी में बसपा-भाजपा की मिलीजुली सरकार चल रही थी. उस वक्त दोनों दलों में अच्छे संबंध थे. वाजपेयी के ऑफर के बारे में खुद कांशीराम कहा करते थे."

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